घटना में 42 लोगों की मौत हो गई थी. उत्तर प्रदेश राज्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और नरसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित कुछ निजी पक्षों की अपीलों पर उच्च न्यायालय ने छह सितंबर को
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय 1987 के हाशिमपुरा मामले में 16 पुलिसकर्मियों को हत्या और अन्य अपराधों के आरोपों से बरी करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार (31 अक्टूबर) को फैसला सुनाएगा. घटना में 42 लोगों की मौत हो गई थी. उत्तर प्रदेश राज्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और नरसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित कुछ निजी पक्षों की अपीलों पर उच्च न्यायालय ने छह सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
मामले में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम की कथित भूमिका का पता लगाने के लिए आगे जांच की मांग को लेकर बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. अदालत ने 17 फरवरी 2016 को स्वामी की याचिका को मामले में अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था. निचली अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए मेरठ में 42 लोगों की हत्या के आरोपी 16 प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी कर्मियों को बरी कर दिया था.
आपको बता दें कि 21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने संदेश का लाभ देते हुए प्रोविजनल आर्म्ड कांस्टेबलरी (पीएसी) के 16 पुलिसकर्मियों को 42 लोगों की हत्या के मामले में बरी कर दिया था. अदालत ने टिप्पणी की थी कि 42 लोगों की हत्या के मामले में आरोपितों की पहचान के लिए बचाव पक्ष पर्याप्त सुबूत नहीं पेश कर सका. पीड़ितों की याचिका पर सितंबर 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दिल्ली हाई कोर्ट को ट्रांसफर किया.मामले में 19 को हत्या, हत्या का प्रयास, सुबूतों से छेड़छाड़ और साजिश रचने की धाराओं में आरोपित बनाया गया था. 2006 में 17 लोगों पर आरोप तय किए गए. मामले में अदालत ने सभी 16 आरोपितों को बरी कर दिया था, जबकि सुनवाई के दौरान एक आरोपित की मृत्यु हो गई थी. एनएचआरसी ने मामले में दोबारा जांच की मांग की थी. वहीं, सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा पी. चिदंबरम की भूमिका की दोबारा जांच की मांग को लेकर दायर याचिका निचली अदालत ने 8 मार्च 2013 को खारिज कर दी थी. पी. चिदंबरम 1986 से 1989 तक केंद्रीय मंत्री थे. इसके बाद स्वामी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय 1987 के हाशिमपुरा मामले में 16 पुलिसकर्मियों को हत्या और अन्य अपराधों के आरोपों से बरी करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार (31 अक्टूबर) को फैसला सुनाएगा. घटना में 42 लोगों की मौत हो गई थी. उत्तर प्रदेश राज्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और नरसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित कुछ निजी पक्षों की अपीलों पर उच्च न्यायालय ने छह सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
मामले में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम की कथित भूमिका का पता लगाने के लिए आगे जांच की मांग को लेकर बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. अदालत ने 17 फरवरी 2016 को स्वामी की याचिका को मामले में अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था. निचली अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए मेरठ में 42 लोगों की हत्या के आरोपी 16 प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी कर्मियों को बरी कर दिया था.
आपको बता दें कि 21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने संदेश का लाभ देते हुए प्रोविजनल आर्म्ड कांस्टेबलरी (पीएसी) के 16 पुलिसकर्मियों को 42 लोगों की हत्या के मामले में बरी कर दिया था. अदालत ने टिप्पणी की थी कि 42 लोगों की हत्या के मामले में आरोपितों की पहचान के लिए बचाव पक्ष पर्याप्त सुबूत नहीं पेश कर सका. पीड़ितों की याचिका पर सितंबर 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दिल्ली हाई कोर्ट को ट्रांसफर किया.मामले में 19 को हत्या, हत्या का प्रयास, सुबूतों से छेड़छाड़ और साजिश रचने की धाराओं में आरोपित बनाया गया था. 2006 में 17 लोगों पर आरोप तय किए गए. मामले में अदालत ने सभी 16 आरोपितों को बरी कर दिया था, जबकि सुनवाई के दौरान एक आरोपित की मृत्यु हो गई थी. एनएचआरसी ने मामले में दोबारा जांच की मांग की थी. वहीं, सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा पी. चिदंबरम की भूमिका की दोबारा जांच की मांग को लेकर दायर याचिका निचली अदालत ने 8 मार्च 2013 को खारिज कर दी थी. पी. चिदंबरम 1986 से 1989 तक केंद्रीय मंत्री थे. इसके बाद स्वामी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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