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डियर जिंदगी: गैस चैंबर; बच्‍चे आपके हैं, सरकार और स्‍कूल के नहीं!

प्रदूषण के नाम पर न तो वोट कटते हैं. न ही साफ हवा होने से अधिक मिलते हैं. इसलिए हवा, पानी किसी की चिंता में शामिल नहीं. पराली जलाने से रोकने में ‘खतरा’ है, इसलिए पदिल्‍ली, एनसीआर में प्रदूषण नए ऐतिहासिक पड़ाव को पार कर रहा है. मंगलवार को दिल्‍ली की हवा ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गई. एक पार्टी मॉस्‍क बांटकर खुश है, तो दूसरी को लग रहा है कि इसकी नाराजगी की सजा उसे नहीं किसी ‘और’ को मिलेगी. लोकतंत्र के नाम पर हमें ‘गोल-गोल रानी, कितना-कितना पानी’ खि‍लाने वाली पार्टियां जानती हैं कि प्रदूषण के नाम पर न तो वोट कटते हैं. न ही साफ हवा होने से अधिक मिलते हैं. इसलिए हवा, पानी किसी की चिंता में शामिल नहीं. पराली जलाने से रोकने में ‘खतरा’ है, इसलिए प्रदूषण की जगह पराली पर ध्‍यान दिया जा रहा है! ्रदूषण की जगह पराली पर ध्‍यान दिया जा रहा है!पार्टियां बस दिन गिनती रहती हैं. कैसे भी नवंबर बीत जाए. अगर आप प्रदूषण झेल गए, जिंदा, सेहतमंद बचे रहे, तो अगले नवंबर तक आपको उलझाए रखने के लिए उनके पास बहुत से मुद्दे हैं.ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इस हवा से हमारी सांसों में घुलने वाले पीएम 10 और पीएम 2.5 नसों में सूजन का कारण बनते हैं. इससे हार्ट अटैक, पैरालिसिस का खतरा बढ़ जाता है. जिनको सबसे अधिक नुकसान होने की बात कही जा रही है, उनमें बच्‍चे सबसे पहले हैं. उसके बाद सांस के रोगियों, बुजुर्ग सबसे अधिक संकट में हैं.  हर दिन गंभीर होती हवा के बीच बच्‍चे स्‍कूल जा रहे हैं. स्‍कूल को चिंता है कि अगर छुट्टी कर दी, तो बच्‍चों का कोर्स पीछे छूट जाएगा. बहुत से स्‍कूल इन दिनों अपने ‘एनुअल फंक्‍शन’ में व्‍यस्‍त हैं. कितने आश्‍चर्य की बात है कि बात-बात में मीडिया को कोसने वाला समाज, सरकार दोनों मौन हैं.सरकार के पास कोई योजना नहीं. समाज के लिए अभी तक यह मुद्दा ही नहीं! यह तब है जब अखबार, टीवी, डिजिटल प्रदूषण के बारे में हर दिन रिपोर्ट कर रहे हैं. अगर इन सबके बाद भी सरकार, समाज आंखें मूंदे बैठे हैं. जिम्‍मेदारी एक-दूसरे पर सरकाई जा रही है, तो ऐसे में आप बच्‍चों को केवल इसलिए जहरीली हवा में दौड़ाते रहें, क्‍योंकि छुट्टी की घोषणा नहीं हुई है!विशेषज्ञ कह रहे हैं बच्‍चे, बुजुर्ग खुले में जितना कम जाएं, बेहतर होगा. ऐसे में स्‍कूल का बिना किसी बाधा के खुलते रहना हमारी सजगता, संवेदनशीलता के भी खतरनाक स्‍तर पर पहुंचने का प्रमाण है. ऐसा इसलिए भी हो रहा है, क्‍योंकि हमने बच्‍चों को स्‍कूल के भरोसे छोड़ दिया है. उनके बारे में हर फैसला लेने का अधिकार स्‍कूल को है. अभिभावक क्‍यों इस बारे में खुद फैसले नहीं लेते. जनहित याचिका दायर करने वालों की नजर इस पर क्‍यों नहीं जाती, इसलिए क्‍योंकि बच्‍चे हमारी प्राथमिकता में नहीं हैं.सरकार केवल उनके लिए सरोकार का प्रदर्शन करती है, जो अठारह बरस से ऊपर हों. उसके वोट बैंक का हिस्‍सा हों!
बच्‍चे किसी राजनीतिक पार्टी की वोट बैंक की रणनीति में नहीं समाते. इसलिए वह किसी चिंता का विषय नहीं हैं. अभिभावकों से ही केवल यह निवेदन किया जा सकता है कि बच्‍चों को स्‍कूल, सरकार के भरोसे न रहने दें!बच्‍चा सबसे पहले आपका है! आपके सारे फैसले, इसी सूत्र को ध्‍यान में रखकर लिए जाने चाहिए.
बच्‍चे के प्रदूषण से बचे रहने की शुभकामना सहित!इसलिए क्योंकि उनके बारे में हर फैसला स्‍कूल को करना है.

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