नई दिल्ली: जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक इकाई ने देश में 3600 घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे थे. इसका खुलासा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सरकारी समिति की रिपोर्ट में हुआ है. समिति ने कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है और जिन मरीजों के यह सिस्टम लगा है उन्हें 20-20 लाख रुपए मुआवजा दिलवाने की सिफारिश केंद्र सरकार से की है. समिति ने कहा है कि सरकार को कंपनी से मुआवजा दिलाने के लिए एक हाईलेवल कमेटी बनानी चाहिए. इन घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम से मरीजों की जान खतरे में है. समिति ने कहा है कि सिस्टम में बेहत घटिया सामग्री का इस्तेमाल हुआ है.
हिप ज्वाइंट में बॉल और सॉकेट है, जो कार्टिलेज से कवर्ड है और लुब्रिकेटिंग मेम्ब्रेन से ढका हुआ है तो यह सुरक्षित रहे. पूरे हिप रिप्लेसमेंट में सभी उपकरणों को प्रोस्थेटिक कंपोनेंट से बदला जाता है जबकि मेटल स्टेल को थाई बोन के हॉलो सेंटर में लगाया गया है. प्रोस्थेटिक बॉल, सॉकेट और कार्टिलेज मजबूत प्लास्टिक, मेटल या सिरामिक के बने हैं. सामान्यत: जो हिप इम्प्लांट बाजार में मौजूद है वह मेटल ऑन पॉलीथीन, सिरेमिक ऑन पॉलीथीन पर होते हैं.
क्यों खड़ा हुआ विवाद?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक ये इम्प्लांट मेटल ऑन मेटल है. इसमें कोबाल्ट, क्रोमियम और मोलिबडेनम मुख्य अवयव हैं. एएसआर (आर्टिकुलेट सर्फेस रिप्लेसमेंट) एक्स एल एसीटाबुलर सिस्टम और एएसआर हिप रीसर्फेसिंग सिस्टम की मैन्युफैक्चरिंग जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक कंपनी डिप्टी इंटरनेशनल लिमिटेड करती है. वह ही इसकी बिक्री भी करती है.
क्या खड़ी हुई समस्या?
जब प्रोस्थेटिक बॉल और सॉकेट आपस में रगड़ते थे तो यह खराब होने लगते थे. अगर इम्पलांट मेटल ऑन मेटल है तो इससे धातु निकलकर रक्त में मिल जाती है. इससे दिक्कत खड़ी हो जाती है और कई बार रिविजन सर्जरी की जरूरत पड़ती है. दुनिया में 93000 रोगियों को यह इम्प्लांट लगा है. कई को इससे काफी तकलीफ हुई है. उनकी दोबारा सर्जरी करनी पड़ी है. कई के एएसआर इम्प्लांट बदले गए हैं. इस कारण कंपनी ने 2010 में इन्हें खुद ही वापस मंगा लिया था.
भारत में कितने मरीजों में लगा यह इम्प्लांट
भारत में कंपनी को 2006 में इसे इम्पोर्ट करने का लाइसेंस मिला. तब तक दुनिया में इसे रिकॉल किया जा रहा था. अनुमान के तौर पर 4700 एएसआर इम्प्लांट भारत में लगे हैं. जब दुनिया में इस इम्प्लांट को लेकर बखेड़ा खड़ा हुआ तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2017 में इसकी जांच कराई और सारी सच्चाई सामने आ गई.
समिति ने ये सिफारिश की
1- कंपनी हरेक प्रभावित मरीज को 20 लाख रुपए मुआवजा दे
2- अगस्त 2025 तक सभी मरीजों के खराब सिस्टम बदले
3- उन लोगों के नाम जाहिर किए जाएं जिनके यह सिस्टम लगा है
4- हरेक मरीज का हर साल चेकअप हो, यह प्रक्रिया 2025 तक चलेगी
5- मंत्रालय इसके लिए एक एक्सपर्ट टीम बनाए, जो मरीजों के दावे का निस्तारण कराए
हिप ज्वाइंट में बॉल और सॉकेट है, जो कार्टिलेज से कवर्ड है और लुब्रिकेटिंग मेम्ब्रेन से ढका हुआ है तो यह सुरक्षित रहे. पूरे हिप रिप्लेसमेंट में सभी उपकरणों को प्रोस्थेटिक कंपोनेंट से बदला जाता है जबकि मेटल स्टेल को थाई बोन के हॉलो सेंटर में लगाया गया है. प्रोस्थेटिक बॉल, सॉकेट और कार्टिलेज मजबूत प्लास्टिक, मेटल या सिरामिक के बने हैं. सामान्यत: जो हिप इम्प्लांट बाजार में मौजूद है वह मेटल ऑन पॉलीथीन, सिरेमिक ऑन पॉलीथीन पर होते हैं.
क्यों खड़ा हुआ विवाद?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक ये इम्प्लांट मेटल ऑन मेटल है. इसमें कोबाल्ट, क्रोमियम और मोलिबडेनम मुख्य अवयव हैं. एएसआर (आर्टिकुलेट सर्फेस रिप्लेसमेंट) एक्स एल एसीटाबुलर सिस्टम और एएसआर हिप रीसर्फेसिंग सिस्टम की मैन्युफैक्चरिंग जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक कंपनी डिप्टी इंटरनेशनल लिमिटेड करती है. वह ही इसकी बिक्री भी करती है.
क्या खड़ी हुई समस्या?
जब प्रोस्थेटिक बॉल और सॉकेट आपस में रगड़ते थे तो यह खराब होने लगते थे. अगर इम्पलांट मेटल ऑन मेटल है तो इससे धातु निकलकर रक्त में मिल जाती है. इससे दिक्कत खड़ी हो जाती है और कई बार रिविजन सर्जरी की जरूरत पड़ती है. दुनिया में 93000 रोगियों को यह इम्प्लांट लगा है. कई को इससे काफी तकलीफ हुई है. उनकी दोबारा सर्जरी करनी पड़ी है. कई के एएसआर इम्प्लांट बदले गए हैं. इस कारण कंपनी ने 2010 में इन्हें खुद ही वापस मंगा लिया था.
भारत में कितने मरीजों में लगा यह इम्प्लांट
भारत में कंपनी को 2006 में इसे इम्पोर्ट करने का लाइसेंस मिला. तब तक दुनिया में इसे रिकॉल किया जा रहा था. अनुमान के तौर पर 4700 एएसआर इम्प्लांट भारत में लगे हैं. जब दुनिया में इस इम्प्लांट को लेकर बखेड़ा खड़ा हुआ तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2017 में इसकी जांच कराई और सारी सच्चाई सामने आ गई.
समिति ने ये सिफारिश की
1- कंपनी हरेक प्रभावित मरीज को 20 लाख रुपए मुआवजा दे
2- अगस्त 2025 तक सभी मरीजों के खराब सिस्टम बदले
3- उन लोगों के नाम जाहिर किए जाएं जिनके यह सिस्टम लगा है
4- हरेक मरीज का हर साल चेकअप हो, यह प्रक्रिया 2025 तक चलेगी
5- मंत्रालय इसके लिए एक एक्सपर्ट टीम बनाए, जो मरीजों के दावे का निस्तारण कराए
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